Thursday 22 November 2018

"भारत सरकार अंडमान के सेंटिनिलीज आदिवासियों की जीवन रक्षा करे "- दुनिया भर से गुहार 
अमेरिकी धर्म प्रचारक की मौत से यही सबक हासिल होता है
नई दिल्ली, 22  नवंबर .  अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप में 55 हजार वर्षों से जीवन बसर करने वाले अति प्राचीन आदिवासी समुदाय के मुट्ठी भर बचे रह गए लोगों की रक्षा करने के लिए दुनिया भर से गुहार की जा रही है। भारत सरकार से अपील की जा रही है कि वह इस द्वीप को पहले की तरह प्रतिबंधित क्षेत्र  बनाये रखे तथा पर्यटन के नाम पर इन पूर्व पाषाणकालीन मानवों का जीवन खतरे  में नहीं डालें। `
सेंटिनल द्वीप में ईसाई धर्म का प्रचार करने पहुंचा अमेरिका का एक युवक इन आदिवासियों के हमले में कुछ दिन पहले मारा गया। जॉन एलन चाओ नामक इस युवक की दुखद मृत्यु के बाद दुनिया भर में इन  आदिवासियों की अस्तित्व रक्षा  को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। नृवंशशास्त्री, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता भारत सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि सेंटिनेलीज आदिवासियों को उनके एकांत परिवेश में रहने दिया जाये। बाहरी दुनिया से संपर्क उनके जीवन को खतरे में डाल देगा। 
आधुनिक विश्व में जीवन रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों के लिए कार्यरत संस्था "सर्वाइवल इंटरनेशनल" के स्टीफेन  कोरी ने एक वक्तव्य में कहा कि अमेरिकी ईसाई धर्म प्रचारक जॉन एलन चाओ की मौत की नौबत ही नहीं आती यदि सेंटिनल द्वीप एक प्रतिबंधित क्षेत्र बना रहता। इन आदिवासियों और बाहरी लोगों की सुरक्षा के लिए इस द्वीप में किसी को जाने की अनुमति होनी ही नहीं चाहिए।
अंडमान और निकोबार द्वीपों में आदिवासियों पर दो दशक तक शोध करने वाली  समाज वैज्ञानिक सोफी ग्रिग ने भी आदिवासियों की जीवन शैली को बाहरी आक्रमण से सुरक्षित करने की गुहार लगाई है।
स्टीफेन कोरी ने खेद व्यक्त किया कि भारत सरकार ने कुछ महीने पहले इस क्षेत्र में जाने पर लगी रोक हटा ली थी जिसकी परिणति अमेरिकी युवक की मौत के रूप में हुई।  इस द्वीप को विदेश पर्यटकों के लिए खोलना आदिवासियों के जीवन को खतरे में डालना है। कोरी के अनुसार बाहरी लोग रोग के ऐसे विषाणु द्वीप में पहुंचा सकते हैं जिनका मुकाबला करने के लिए आदिवासियों में प्रतिरोध क्षमता नहीं हो।
"सर्वाइवल इंटरनेशनल" ने आशंका व्यक्त की है कि हो सकता है कि अमेरिकी धर्म प्रचारक की द्वीप पर मौजूदगी से आदिवासी संक्रमण का शिकार हो चुके हों। यदि ऐसा हुया  है तो शेष बचे रह गए सेंटिनिलीज का पूरी तरह खात्मा हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार द्वीप पर आदिवासियों की संख्या 40 से सौ-दो सौ के  बीच है। 55 हजार वर्षों से जीवित बचा रहा यह समुदाय कितने दिनों तक धरती पर रह पायेगा यह नहीं कहा जा सकता।
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता ने कहा कि सेंटिनिलीज लोगों के  व्यवहार से यह सर्वज्ञात है कि वे अपने एकांत परिवेश में रहना चाहते हैं। उनकी इस भावना का सम्मान किया जाना चाहिए। अंडमान द्वीप में कुछ सदी पहले  तक हजारों प्राचीन आदिवासी रहते थे। अंग्रेजों के काल में अंडमान पर कब्जे के बाद हजारों आदिवासियों का जीवन नाश हुया।  अपने इन्हीं अनुभवों के कारण सेंटिनिलीज बाहरी लोगों से आशंकित रहते हैं। उनकी आशंका जायज है।
 अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने आग्रह किया है कि सेंटिनिलीज आदिवासियों के इलाके को सुरक्षित बनाये रखा जाना चाहिए। ये लोग अस्तित्व रक्षा के लिहाज से पृथ्वी  पर सबसे अधिक खतरे में हैं। दुनिया के अन्य देशों का अनुभव बताता  है कि बाहरी लोग आदिवासियों की जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं और उन्हें फ्लू और चेचक जैसी बीमारियों  की ऐसी घातक सौगात देते हैं जिसका का सामना करने के लिए उनके शरीर में प्रतिरोध शक्ति नहीं होती।
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं ने भारत सरकार से अपील की है कि वह सेंटिनिलीज और अंडमान की अन्य आदिवासी प्रजातियों की रक्षा के लिए कारगार कदम उठाये और उन्हें बाहरी आक्रमणों से बचाये। अमेरिकी धर्म प्रचारक की मौत से यही सबक हासिल होता है कि अस्तित्व रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे इन लोगों को बाहरी आक्रमणों से बचाया जाये।

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