136 years before killing of John Allen Chau, Richard Southwell Bourke, 6th Earl of Mayo, KP, GCSI, PC (21 February 1822 – 8 February 1872), Viceroy of British India was assassinated in Andaman sea . Lord Mayo was stabbed to death, as a revenge,by a life convict exiled to Kalapani, while missionary youth was killed in self defence by proud Sentinelese.
Monday, 3 December 2018
Thursday, 29 November 2018
Dr Madhumala Chattopadhyay who visited #sentinelIsland #Sentinelese #Sentinelesetribe on January 4 and February 21, 1991 is currently Joint Director National Commission for Denotified, Nomadic and Semi-Nomadic Tribes (NCDNT). Government of India
अंडमान के सेंटिनिलीज आदिवासियों से पहले पहल आत्मीय सम्बन्ध बनाया था महिला शोधकर्ता मधुमाला चट्टोपाध्याय ने
नई दिल्ली, 29 नवंबर। आज से करीब तीन दशक पहले एक युवा महिला शोधकर्ता को अंडमान और निकोबार के सेंटिनिलीज आदिवासियों ने अपने द्वीप के तट पर पाँव रखने की अनुमति दी थी। डॉ मधुमाला चट्टोपाध्याय को यह दुर्लभ उपलब्धि मिली थी कि वह पहली शख्स बनीं जो दुनिया से कटे पड़े सेंटिलीज द्वीप के आदिवासियों से रूबरू हो सकीं।
कुछ दिन पहले हाथ में बाइबिल लेकर अमेरिकी मिशनरी जॉन एलन चाउ भी इस द्वीप में जाना चाहता था। अपने एकाकी और विशिष्ट जीवन शैली को सुरक्षित रखने के प्रति जागरूक सेंटिलीज लोगों ने ऐसे सभी घुसपैठियों का प्रतिकार धनुष-बाण से किया। इसी में अमेरिकी युवक को अपनी जान गंवानी पड़ी। लेकिन सेंटिलीज लोगों के साथ पहले पहल आत्मीय संपर्क कायम करने का श्रेय मधुमाला चट्टोपाध्याय को ही मिला।
मधुमाला इस समय केंद्र सरकार के सामजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं। वह अधिसूचित और घुमंतू जनजाति राष्ट्रीय आयोग में संयुक्त निदेशक के रूप में कार्यरत हैं।
एक युवा शोधकर्ता के रूप में मधुमाला जनवरी-फरवरी 1991 में अपने सहयोगियों के साथ इस अनजान द्वीप के रहस्यमय बाशिंदों से मिलने गयी थीं। यह शोधकर्ता दल अपनी जान जोखिम में डाल कर सेंटिलीज लोगों के बारे में अध्ययन करना चाहता था। द्वीप की ओर पहली यात्रा में आदिवासियों ने नृवंशशास्त्रीय दल पर बाण चलाये लेकिन दूसरी बार मधुमाला का स्वागत किया गया और उन्हें तट पर आने दिया गया।
मधुमाला ने अंडमान के आदिम लोगों पर दशकों तक अध्ययन किया है और इस विषय पर एक पुस्तक "ट्राइब्स ऑफ़ कार निकोबार" (कार निकोबार की जनजातियों) लिखी है।
मधुमाला अपने साथियों के साथ अंडमान-निकोबार प्रशासन के जलयान एमवी तरमुगली पर सवार होकर 4 जनवरी 1991 को उत्तरी सेंटिनल दक्षिण-पश्चिम छोर पर पहुंचीं थीं। शोधकर्ताओं के दल में मधुमाला एकमात्र महिला थीं। दल में नाविकों सहित कुल 13 लोग थे। इनमें अंडमान निकोबार प्रशासन के जनजाति कल्याण विभाग के निदेशक एस अवराड़ी, एक चिकित्सक डॉ अरुण मलिक और नृवंशशास्त्री के रूप में मधुमाला शामिल थीं। दल एक नाव उस इलाके की ओर रवाना हुया जहाँ सेन्टीनिलिज की छोटी बस्ती थी।
नाव जब उस क्षेत्र में पहुंची तो तट पर कोई नजर नहीं आया। कुछ देर बाद पेड़ों के पीछे दो चार लोग दिखाई दिए। इनमें से चार के हाथ में धनुष बाण था। मधुमाला और उनके साथियों ने नाव पर रखे गए कुछ नारियल पानी में फेंकने शुरू किये। सेंटिनिलीज ने कुछ इंतजार किया मानों वे यह तय कर रहे हों कि इन अपरिचित बिन बुलाये मेहमानों की मंशा क्या है। कुछ समय बाद वह नाव की ओर आये और पानी में तैर रहे नारियल एकत्र किये। शोधकर्ता दल ने नाव पर रखी नारियल की पूरी खेप पानी में फेंक दी। आदिवासी एक डोंगी ले आये और टोकरियों में सारे नारियल रख लिए। सेंटिलीज ने यह सौगात तो ग्रहण की लेकिन अजनबियों के साथ दूरी बनाये रखी। टीम के लोग सेंटिलीज से मुलाक़ात प्रफुल्लित थे। वे और नारियल लेने के लिए वापस अपने जलयान पर लौट गए। दोपहर बाद उनकी नाव फिर वहां आई। मधुमाला को अंडमान की दूसरी जनजातियों की भाषा के कुछ वाक्य पता थे। उन्होंने चिल्लाया- " नारियली जाबा जाबा" ( और नारियल आये हैं ) इस बार सेंटिलीज अजनबियों के प्रति जयादा आश्वस्त थे। वे नाव के नजदीक तक आ गए। एक युवक ने नाव को हाथ से भी पकड़ लिया। इतने में तट पर खड़े एक दूसरे युवा ने हाथ में धनुष लेकर बाण तान लिया। यह तनाव के क्षण थे। मधुमाला एकटक होकर बाण की और देखती रहीं। बाण छूटा लेकिन सौभाग्य से किसी को लगा नहीं। यह इस कारण को सका क्योंकि युवक के पास खड़ी एक सेंटिलीज महिला ने उसे धक्का दे दिया और बाण का निशाना चूक गया। बाण पानी में आकर गिरा। सेंटिलीज महिला नहीं चाहती थी कि अजनबी दोस्तों को कोई नुकसान पहुंचे।
इस हमले की परवाह नहीं करते हुए मधुमाला नाव से पानी में कूद गयीं और सेंटिलीज लोगों के एकदम पास पहुँच गयीं। वह अपने हाथ से आदिम दोस्तों को नारियल देने लगीं। दुनिया के नृवंश अध्ययन इतिहास में वह एक नयी इबारत लिख रही थीं।
शायद टीम में एक महिला के होने से सेंटिलीज लोगों को यह भरोसा हो गया कि ये लोग उन्हें नुकसान पहुंचाने नहीं आये हैं। सेंटिलीज लोग अपने समुदाय में महिलाओं का बहुत ध्यान रखते हैं।
इतना सब होते हुए भी सेंटिलीज लोगों ने टीम के सदस्यों को तट पर नहीं आने दिया। वह हजारों साल से अपने इलाके की रक्षा कर रहे हैं। इसमें कोई कोताही करने के लिए वे तैयार नहीं थे।
मधुमाला 21 फरवरी को फिर वहां पहुंचीं। सेंटिलीज ने उन्हें पहचान लिया और इस बार उनका व्यवहार दोस्ताना था। वे उनकी नाव के पास आ गए। कुछ तो नाव पर चढ़ गए। मधुमाला को तट पर पाँव रखने की अनुमति मिल गयी। उपग्रह युग की एक महिला का पाषाण युग के बाशिंदों की धरती पर कदम रखना चन्द्रमा पर मानव के पहुँचने जैसा ही कारनामा था।
दुनिया के सबसे पुराने बाशिंदों के साथ मधुमाला फिर मिलना चाहती थीं। इस सम्बन्ध में उन्होंने अधिकारियों से अनुरोध भी किया लेकिन सेंटिलीज को सुरक्षित रखने की नीति के कारण उन्हें अनुमति नहीं मिली। मधुमाला ने अंडमान की जनजातियों के अन्य समूहों के साथ भी संपर्क किया। ये जनजातियां सेंटिलीज से भिन्न हैं और बाहरी लोगों के प्रति ज्यादा खुली हुई हैं।
नई दिल्ली, 29 नवंबर। आज से करीब तीन दशक पहले एक युवा महिला शोधकर्ता को अंडमान और निकोबार के सेंटिनिलीज आदिवासियों ने अपने द्वीप के तट पर पाँव रखने की अनुमति दी थी। डॉ मधुमाला चट्टोपाध्याय को यह दुर्लभ उपलब्धि मिली थी कि वह पहली शख्स बनीं जो दुनिया से कटे पड़े सेंटिलीज द्वीप के आदिवासियों से रूबरू हो सकीं।
कुछ दिन पहले हाथ में बाइबिल लेकर अमेरिकी मिशनरी जॉन एलन चाउ भी इस द्वीप में जाना चाहता था। अपने एकाकी और विशिष्ट जीवन शैली को सुरक्षित रखने के प्रति जागरूक सेंटिलीज लोगों ने ऐसे सभी घुसपैठियों का प्रतिकार धनुष-बाण से किया। इसी में अमेरिकी युवक को अपनी जान गंवानी पड़ी। लेकिन सेंटिलीज लोगों के साथ पहले पहल आत्मीय संपर्क कायम करने का श्रेय मधुमाला चट्टोपाध्याय को ही मिला।
मधुमाला इस समय केंद्र सरकार के सामजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं। वह अधिसूचित और घुमंतू जनजाति राष्ट्रीय आयोग में संयुक्त निदेशक के रूप में कार्यरत हैं।
एक युवा शोधकर्ता के रूप में मधुमाला जनवरी-फरवरी 1991 में अपने सहयोगियों के साथ इस अनजान द्वीप के रहस्यमय बाशिंदों से मिलने गयी थीं। यह शोधकर्ता दल अपनी जान जोखिम में डाल कर सेंटिलीज लोगों के बारे में अध्ययन करना चाहता था। द्वीप की ओर पहली यात्रा में आदिवासियों ने नृवंशशास्त्रीय दल पर बाण चलाये लेकिन दूसरी बार मधुमाला का स्वागत किया गया और उन्हें तट पर आने दिया गया।
मधुमाला ने अंडमान के आदिम लोगों पर दशकों तक अध्ययन किया है और इस विषय पर एक पुस्तक "ट्राइब्स ऑफ़ कार निकोबार" (कार निकोबार की जनजातियों) लिखी है।
मधुमाला अपने साथियों के साथ अंडमान-निकोबार प्रशासन के जलयान एमवी तरमुगली पर सवार होकर 4 जनवरी 1991 को उत्तरी सेंटिनल दक्षिण-पश्चिम छोर पर पहुंचीं थीं। शोधकर्ताओं के दल में मधुमाला एकमात्र महिला थीं। दल में नाविकों सहित कुल 13 लोग थे। इनमें अंडमान निकोबार प्रशासन के जनजाति कल्याण विभाग के निदेशक एस अवराड़ी, एक चिकित्सक डॉ अरुण मलिक और नृवंशशास्त्री के रूप में मधुमाला शामिल थीं। दल एक नाव उस इलाके की ओर रवाना हुया जहाँ सेन्टीनिलिज की छोटी बस्ती थी।
नाव जब उस क्षेत्र में पहुंची तो तट पर कोई नजर नहीं आया। कुछ देर बाद पेड़ों के पीछे दो चार लोग दिखाई दिए। इनमें से चार के हाथ में धनुष बाण था। मधुमाला और उनके साथियों ने नाव पर रखे गए कुछ नारियल पानी में फेंकने शुरू किये। सेंटिनिलीज ने कुछ इंतजार किया मानों वे यह तय कर रहे हों कि इन अपरिचित बिन बुलाये मेहमानों की मंशा क्या है। कुछ समय बाद वह नाव की ओर आये और पानी में तैर रहे नारियल एकत्र किये। शोधकर्ता दल ने नाव पर रखी नारियल की पूरी खेप पानी में फेंक दी। आदिवासी एक डोंगी ले आये और टोकरियों में सारे नारियल रख लिए। सेंटिलीज ने यह सौगात तो ग्रहण की लेकिन अजनबियों के साथ दूरी बनाये रखी। टीम के लोग सेंटिलीज से मुलाक़ात प्रफुल्लित थे। वे और नारियल लेने के लिए वापस अपने जलयान पर लौट गए। दोपहर बाद उनकी नाव फिर वहां आई। मधुमाला को अंडमान की दूसरी जनजातियों की भाषा के कुछ वाक्य पता थे। उन्होंने चिल्लाया- " नारियली जाबा जाबा" ( और नारियल आये हैं ) इस बार सेंटिलीज अजनबियों के प्रति जयादा आश्वस्त थे। वे नाव के नजदीक तक आ गए। एक युवक ने नाव को हाथ से भी पकड़ लिया। इतने में तट पर खड़े एक दूसरे युवा ने हाथ में धनुष लेकर बाण तान लिया। यह तनाव के क्षण थे। मधुमाला एकटक होकर बाण की और देखती रहीं। बाण छूटा लेकिन सौभाग्य से किसी को लगा नहीं। यह इस कारण को सका क्योंकि युवक के पास खड़ी एक सेंटिलीज महिला ने उसे धक्का दे दिया और बाण का निशाना चूक गया। बाण पानी में आकर गिरा। सेंटिलीज महिला नहीं चाहती थी कि अजनबी दोस्तों को कोई नुकसान पहुंचे।
इस हमले की परवाह नहीं करते हुए मधुमाला नाव से पानी में कूद गयीं और सेंटिलीज लोगों के एकदम पास पहुँच गयीं। वह अपने हाथ से आदिम दोस्तों को नारियल देने लगीं। दुनिया के नृवंश अध्ययन इतिहास में वह एक नयी इबारत लिख रही थीं।
शायद टीम में एक महिला के होने से सेंटिलीज लोगों को यह भरोसा हो गया कि ये लोग उन्हें नुकसान पहुंचाने नहीं आये हैं। सेंटिलीज लोग अपने समुदाय में महिलाओं का बहुत ध्यान रखते हैं।
इतना सब होते हुए भी सेंटिलीज लोगों ने टीम के सदस्यों को तट पर नहीं आने दिया। वह हजारों साल से अपने इलाके की रक्षा कर रहे हैं। इसमें कोई कोताही करने के लिए वे तैयार नहीं थे।
मधुमाला 21 फरवरी को फिर वहां पहुंचीं। सेंटिलीज ने उन्हें पहचान लिया और इस बार उनका व्यवहार दोस्ताना था। वे उनकी नाव के पास आ गए। कुछ तो नाव पर चढ़ गए। मधुमाला को तट पर पाँव रखने की अनुमति मिल गयी। उपग्रह युग की एक महिला का पाषाण युग के बाशिंदों की धरती पर कदम रखना चन्द्रमा पर मानव के पहुँचने जैसा ही कारनामा था।
दुनिया के सबसे पुराने बाशिंदों के साथ मधुमाला फिर मिलना चाहती थीं। इस सम्बन्ध में उन्होंने अधिकारियों से अनुरोध भी किया लेकिन सेंटिलीज को सुरक्षित रखने की नीति के कारण उन्हें अनुमति नहीं मिली। मधुमाला ने अंडमान की जनजातियों के अन्य समूहों के साथ भी संपर्क किया। ये जनजातियां सेंटिलीज से भिन्न हैं और बाहरी लोगों के प्रति ज्यादा खुली हुई हैं।
Wednesday, 28 November 2018
Eureka Moment : An Indian anthropologist Dr Madhumala Chattopadhyay , perhaps first and hopefully the last, human being from "modern world" landed in Sentinel island in 1991 and interacted with Sentinelese. Sentineles allowed Indian team to come ashore and took gifts.
Dr Chattopadhya narrates encounter in book-
Dr Chattopadhya narrates encounter in book-
Travelers' Tales India
edited by James O'Reilly, Larry HabeggeTuesday, 27 November 2018
Support for Sentinelese `people in Australian Senate
Senator Pauline Hanson moved a motion in Senate, calling for it to "support the desire of the Sentinelese people to protect their culture and way of life".
"Immigration can have a devastating impact on a people's culture and way of life," Senator Hanson said.
"You would be hard pressed to find a single expert who would argue against protecting the Sentinelese people's culture and way of life through limiting migration to their island.
"I for one will not be condemning the Sentinelese as racist for keeping their borders closed, nor will I condemn them for their lack of diversity."
"All people should have a right to decide their own fate, and I'm disappointed the Senate refused to join me in acknowledging this."
Monday, 26 November 2018
"Abandon efforts to recover John Allen Chau’s body"-Survival International’s Director Stephen Corry
FULL STATEMENT ( NOVEMBER 26)
“We urge the Indian authorities to abandon efforts to recover John Allen Chau’s body. Any such attempt is incredibly dangerous, both for the Indian officials, but also for the Sentinelese, who face being wiped out if any outside diseases are introduced.
“The risk of a deadly epidemic of flu, measles or other outside disease is very real, and increases with every such contact. Such efforts in similar cases in the past have ended with the Sentinelese attempting to defend their island by force.
“Mr Chau’s body should be left alone, as should the Sentinelese. The weakening of the restrictions on visiting the islands must be revoked, and the exclusion zone around the island properly enforced.”
Thursday, 22 November 2018
Sentinel Island incident : National Commission For Scheduled Tribe (NCST) expressed serious concern over activities of foreign tourists in Andaman &Nicobar
NCST expresses serious concern over incident involving US National in A&N Islands
NCST expresses serious concern over incident involving US National in A&N Islands
Seeks Immediate Report from Ministry of Home Affairs (MHA) and A&N administration
The National Commission for Scheduled Tribes has expressed serious concern over the news report regarding one US National feared killed by protected tribe in Andaman and Nicobar Islands. Calling this incident as unfortunate, the Commission has sought immediate report from Ministry of Home Affairs as well as Andaman and Nicobar Administration.
On 13th July, 2018 based on the complaint received from Prof. Vishwajit Pandya, the Commission had sought information from the Ministry of Home Affairs and Andaman and Nicobar Islands regarding relaxation of the Restricted Area Permit (RAP) for foreign nationals and tourism development in 29 islands of Andaman & Nicobar Islands. The report of Ministry of Home Affairs as well as Andaman & Nicobar Islands is yet to be received.
The Commission had held a two day Conference on 27th and 28th June, 2018 to discuss critical issues concerning Particularly Vulnerable Tribes Groups (PVTGs) of Andaman & Nicobar Islands. The recommendations of the two day conference have been adopted by the Commission in its 107th meeting held recently. The commission had advised the Government to be ultra-sensitive to the vulnerability of the PVTGs in Andaman & Nicobar Islands and any attempt for tourism development etc, in these islands, which can create unwarranted and dramatic cultural changes for PVTGs, should be looked into and stopped forthwith.
Chairperson, NCST, Dr. Nand Kumar Sai has also written a letter to the Union Home Minister on 8th August, 2018, requesting him to safeguard the interests of tribals under Protection of Aboriginal Tribes Regulations in this regard.
Stop Extinction Tourism in Andaman and Nicobar : A timely warning from "Survival Internantional"
An American man, reportedly a missionary, has been killed by members of the Sentinelese tribe in the Andaman Islands, India. Survival International’s Director Stephen Corry said today:
“This tragedy should never have been allowed to happen. The Indian authorities should have been enforcing the protection of the Sentinelese and their island for the safety of both the tribe and outsiders.
“Instead, a few months ago the authorities lifted one of the restrictions that had been protecting the Sentinelese tribe’s island from foreign tourists, which sent exactly the wrong message, and may have contributed to this terrible event.
“It’s not impossible that the Sentinelese have just been infected by deadly pathogens to which they have no immunity, with the potential to wipe out the entire tribe.
“The Sentinelese have shown again and again that they want to be left alone, and their wishes should be respected. The British colonial occupation of the Andaman Islands decimated the tribes living there, wiping out thousands of tribespeople, and only a fraction of the original population now survive. So the Sentinelese fear of outsiders is very understandable.
“Uncontacted tribes must have their lands properly protected. They’re the most vulnerable peoples on the planet. Whole populations are being wiped out by violence from outsiders who steal their land and resources, and by diseases like the flu and measles to which they have no resistance.
“Tribes like the Sentinelese face catastrophe unless their land is protected. I hope this tragedy acts as a wake up call to the Indian authorities to avert another disaster and properly protect the lands of both the Sentinelese, and the other Andaman tribes, from further invaders.”
An American man, reportedly a missionary, has been killed by members of the Sentinelese tribe in the Andaman Islands, India. Survival International’s Director Stephen Corry said today:
“This tragedy should never have been allowed to happen. The Indian authorities should have been enforcing the protection of the Sentinelese and their island for the safety of both the tribe and outsiders.
“Instead, a few months ago the authorities lifted one of the restrictions that had been protecting the Sentinelese tribe’s island from foreign tourists, which sent exactly the wrong message, and may have contributed to this terrible event.
“It’s not impossible that the Sentinelese have just been infected by deadly pathogens to which they have no immunity, with the potential to wipe out the entire tribe.
“The Sentinelese have shown again and again that they want to be left alone, and their wishes should be respected. The British colonial occupation of the Andaman Islands decimated the tribes living there, wiping out thousands of tribespeople, and only a fraction of the original population now survive. So the Sentinelese fear of outsiders is very understandable.
“Uncontacted tribes must have their lands properly protected. They’re the most vulnerable peoples on the planet. Whole populations are being wiped out by violence from outsiders who steal their land and resources, and by diseases like the flu and measles to which they have no resistance.
“Tribes like the Sentinelese face catastrophe unless their land is protected. I hope this tragedy acts as a wake up call to the Indian authorities to avert another disaster and properly protect the lands of both the Sentinelese, and the other Andaman tribes, from further invaders.”
"भारत सरकार अंडमान के सेंटिनिलीज आदिवासियों की जीवन रक्षा करे "- दुनिया भर से गुहार
अमेरिकी धर्म प्रचारक की मौत से यही सबक हासिल होता है
नई दिल्ली, 22 नवंबर . अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप में 55 हजार वर्षों से जीवन बसर करने वाले अति प्राचीन आदिवासी समुदाय के मुट्ठी भर बचे रह गए लोगों की रक्षा करने के लिए दुनिया भर से गुहार की जा रही है। भारत सरकार से अपील की जा रही है कि वह इस द्वीप को पहले की तरह प्रतिबंधित क्षेत्र बनाये रखे तथा पर्यटन के नाम पर इन पूर्व पाषाणकालीन मानवों का जीवन खतरे में नहीं डालें। `
सेंटिनल द्वीप में ईसाई धर्म का प्रचार करने पहुंचा अमेरिका का एक युवक इन आदिवासियों के हमले में कुछ दिन पहले मारा गया। जॉन एलन चाओ नामक इस युवक की दुखद मृत्यु के बाद दुनिया भर में इन आदिवासियों की अस्तित्व रक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। नृवंशशास्त्री, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता भारत सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि सेंटिनेलीज आदिवासियों को उनके एकांत परिवेश में रहने दिया जाये। बाहरी दुनिया से संपर्क उनके जीवन को खतरे में डाल देगा।
आधुनिक विश्व में जीवन रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों के लिए कार्यरत संस्था "सर्वाइवल इंटरनेशनल" के स्टीफेन कोरी ने एक वक्तव्य में कहा कि अमेरिकी ईसाई धर्म प्रचारक जॉन एलन चाओ की मौत की नौबत ही नहीं आती यदि सेंटिनल द्वीप एक प्रतिबंधित क्षेत्र बना रहता। इन आदिवासियों और बाहरी लोगों की सुरक्षा के लिए इस द्वीप में किसी को जाने की अनुमति होनी ही नहीं चाहिए।
अंडमान और निकोबार द्वीपों में आदिवासियों पर दो दशक तक शोध करने वाली समाज वैज्ञानिक सोफी ग्रिग ने भी आदिवासियों की जीवन शैली को बाहरी आक्रमण से सुरक्षित करने की गुहार लगाई है।
स्टीफेन कोरी ने खेद व्यक्त किया कि भारत सरकार ने कुछ महीने पहले इस क्षेत्र में जाने पर लगी रोक हटा ली थी जिसकी परिणति अमेरिकी युवक की मौत के रूप में हुई। इस द्वीप को विदेश पर्यटकों के लिए खोलना आदिवासियों के जीवन को खतरे में डालना है। कोरी के अनुसार बाहरी लोग रोग के ऐसे विषाणु द्वीप में पहुंचा सकते हैं जिनका मुकाबला करने के लिए आदिवासियों में प्रतिरोध क्षमता नहीं हो।
"सर्वाइवल इंटरनेशनल" ने आशंका व्यक्त की है कि हो सकता है कि अमेरिकी धर्म प्रचारक की द्वीप पर मौजूदगी से आदिवासी संक्रमण का शिकार हो चुके हों। यदि ऐसा हुया है तो शेष बचे रह गए सेंटिनिलीज का पूरी तरह खात्मा हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार द्वीप पर आदिवासियों की संख्या 40 से सौ-दो सौ के बीच है। 55 हजार वर्षों से जीवित बचा रहा यह समुदाय कितने दिनों तक धरती पर रह पायेगा यह नहीं कहा जा सकता।
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता ने कहा कि सेंटिनिलीज लोगों के व्यवहार से यह सर्वज्ञात है कि वे अपने एकांत परिवेश में रहना चाहते हैं। उनकी इस भावना का सम्मान किया जाना चाहिए। अंडमान द्वीप में कुछ सदी पहले तक हजारों प्राचीन आदिवासी रहते थे। अंग्रेजों के काल में अंडमान पर कब्जे के बाद हजारों आदिवासियों का जीवन नाश हुया। अपने इन्हीं अनुभवों के कारण सेंटिनिलीज बाहरी लोगों से आशंकित रहते हैं। उनकी आशंका जायज है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने आग्रह किया है कि सेंटिनिलीज आदिवासियों के इलाके को सुरक्षित बनाये रखा जाना चाहिए। ये लोग अस्तित्व रक्षा के लिहाज से पृथ्वी पर सबसे अधिक खतरे में हैं। दुनिया के अन्य देशों का अनुभव बताता है कि बाहरी लोग आदिवासियों की जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं और उन्हें फ्लू और चेचक जैसी बीमारियों की ऐसी घातक सौगात देते हैं जिसका का सामना करने के लिए उनके शरीर में प्रतिरोध शक्ति नहीं होती।
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं ने भारत सरकार से अपील की है कि वह सेंटिनिलीज और अंडमान की अन्य आदिवासी प्रजातियों की रक्षा के लिए कारगार कदम उठाये और उन्हें बाहरी आक्रमणों से बचाये। अमेरिकी धर्म प्रचारक की मौत से यही सबक हासिल होता है कि अस्तित्व रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे इन लोगों को बाहरी आक्रमणों से बचाया जाये।
अमेरिकी धर्म प्रचारक की मौत से यही सबक हासिल होता है
नई दिल्ली, 22 नवंबर . अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप में 55 हजार वर्षों से जीवन बसर करने वाले अति प्राचीन आदिवासी समुदाय के मुट्ठी भर बचे रह गए लोगों की रक्षा करने के लिए दुनिया भर से गुहार की जा रही है। भारत सरकार से अपील की जा रही है कि वह इस द्वीप को पहले की तरह प्रतिबंधित क्षेत्र बनाये रखे तथा पर्यटन के नाम पर इन पूर्व पाषाणकालीन मानवों का जीवन खतरे में नहीं डालें। `
सेंटिनल द्वीप में ईसाई धर्म का प्रचार करने पहुंचा अमेरिका का एक युवक इन आदिवासियों के हमले में कुछ दिन पहले मारा गया। जॉन एलन चाओ नामक इस युवक की दुखद मृत्यु के बाद दुनिया भर में इन आदिवासियों की अस्तित्व रक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। नृवंशशास्त्री, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता भारत सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि सेंटिनेलीज आदिवासियों को उनके एकांत परिवेश में रहने दिया जाये। बाहरी दुनिया से संपर्क उनके जीवन को खतरे में डाल देगा।
आधुनिक विश्व में जीवन रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों के लिए कार्यरत संस्था "सर्वाइवल इंटरनेशनल" के स्टीफेन कोरी ने एक वक्तव्य में कहा कि अमेरिकी ईसाई धर्म प्रचारक जॉन एलन चाओ की मौत की नौबत ही नहीं आती यदि सेंटिनल द्वीप एक प्रतिबंधित क्षेत्र बना रहता। इन आदिवासियों और बाहरी लोगों की सुरक्षा के लिए इस द्वीप में किसी को जाने की अनुमति होनी ही नहीं चाहिए।
अंडमान और निकोबार द्वीपों में आदिवासियों पर दो दशक तक शोध करने वाली समाज वैज्ञानिक सोफी ग्रिग ने भी आदिवासियों की जीवन शैली को बाहरी आक्रमण से सुरक्षित करने की गुहार लगाई है।
स्टीफेन कोरी ने खेद व्यक्त किया कि भारत सरकार ने कुछ महीने पहले इस क्षेत्र में जाने पर लगी रोक हटा ली थी जिसकी परिणति अमेरिकी युवक की मौत के रूप में हुई। इस द्वीप को विदेश पर्यटकों के लिए खोलना आदिवासियों के जीवन को खतरे में डालना है। कोरी के अनुसार बाहरी लोग रोग के ऐसे विषाणु द्वीप में पहुंचा सकते हैं जिनका मुकाबला करने के लिए आदिवासियों में प्रतिरोध क्षमता नहीं हो।
"सर्वाइवल इंटरनेशनल" ने आशंका व्यक्त की है कि हो सकता है कि अमेरिकी धर्म प्रचारक की द्वीप पर मौजूदगी से आदिवासी संक्रमण का शिकार हो चुके हों। यदि ऐसा हुया है तो शेष बचे रह गए सेंटिनिलीज का पूरी तरह खात्मा हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार द्वीप पर आदिवासियों की संख्या 40 से सौ-दो सौ के बीच है। 55 हजार वर्षों से जीवित बचा रहा यह समुदाय कितने दिनों तक धरती पर रह पायेगा यह नहीं कहा जा सकता।
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता ने कहा कि सेंटिनिलीज लोगों के व्यवहार से यह सर्वज्ञात है कि वे अपने एकांत परिवेश में रहना चाहते हैं। उनकी इस भावना का सम्मान किया जाना चाहिए। अंडमान द्वीप में कुछ सदी पहले तक हजारों प्राचीन आदिवासी रहते थे। अंग्रेजों के काल में अंडमान पर कब्जे के बाद हजारों आदिवासियों का जीवन नाश हुया। अपने इन्हीं अनुभवों के कारण सेंटिनिलीज बाहरी लोगों से आशंकित रहते हैं। उनकी आशंका जायज है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने आग्रह किया है कि सेंटिनिलीज आदिवासियों के इलाके को सुरक्षित बनाये रखा जाना चाहिए। ये लोग अस्तित्व रक्षा के लिहाज से पृथ्वी पर सबसे अधिक खतरे में हैं। दुनिया के अन्य देशों का अनुभव बताता है कि बाहरी लोग आदिवासियों की जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं और उन्हें फ्लू और चेचक जैसी बीमारियों की ऐसी घातक सौगात देते हैं जिसका का सामना करने के लिए उनके शरीर में प्रतिरोध शक्ति नहीं होती।
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं ने भारत सरकार से अपील की है कि वह सेंटिनिलीज और अंडमान की अन्य आदिवासी प्रजातियों की रक्षा के लिए कारगार कदम उठाये और उन्हें बाहरी आक्रमणों से बचाये। अमेरिकी धर्म प्रचारक की मौत से यही सबक हासिल होता है कि अस्तित्व रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे इन लोगों को बाहरी आक्रमणों से बचाया जाये।
Wednesday, 3 October 2018
Manikarnika-
Jhansi Ki Rani- Poem by
Subhadra Kumari Chauhan (1904-1948)
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी
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सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।।
कानपुर के नाना की, मुंहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथाएं उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झांसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियां छाई झांसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झांसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियां छाई झांसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियां कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियां कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुझा दीप झांसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया।
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झांसी हुई बीरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
रानी रोईं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
नाना धुंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
इनकी गाथा छोड़, चले हम झांसी के मैदानों में,
जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुंह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियां रानी के संग आई थी,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुंह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियां रानी के संग आई थी,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
तो भी रानी मार-काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फांसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झांसी।
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फांसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झांसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
Thursday, 20 September 2018
RSS Chief Mohan Bhagwat's "Hindutva Coup" : India stunned, cadre confused
New Delhi, September 20. Lakhs of swayamsevakas assmbeled in parks and open fields in thousands of shakhas across the country this morning, were pondering over the utterances of chief of world's largest social organisation Rashtriya Swayamsevaka Sangh (RSS), Mohan Bhagwat, delivered on the last day of the three day dialogue session here yesterday. Cadres were confused and Bauddhik Pramukhs (teachers) of the shakhas were unable to answer their queries.
What was supposed to be a get together of RSS leaders and select (but large) group of people from different sections of the society turned out to be a historic event in which Mohan Bhagwat unveiled a new course for RSS and India at large. Nobody expected that that Bhagwat would redefine the core concept of Hindu nationalism, "Hindutva" in the gathering , so suddenly and so radically.
Detractors and cynics were also at the loss of words as the RSS Chief deprived them of their main arguments often used against the RSS, that it is an anti-Muslim and exclusionist organisation. Bhagwat declared that Muslims were integral part of Hindu Nation. Without Muslims, Hindu nation is incomplete. Swayamsevaks over the decades were indoctrinated and inculcated with the thought that Hindus were the real "son of soil" and Hindu Nation should be immune from alien influences. Muslims, unless Indianised, can not be part of Hindu Nation. Without demanding any initiation, Bhagwat included about 150 million Muslims into RSS's vision of Hindu Nation.
RSS overnight turned out to be a progressive and socially radical organisation instead of a conservative and orthodox organisation, as the Chief supported Roti-Beti relationship ( dining together and engaging in inter-caste marriages)
Was Bhagwat mandated by the top leadership of RSS to put forward this new vision of Hindu Nation? has there been any exercise to gather the opinions of ground level swayamsevakas? Was he expressing his personal views? There is nothing like personal views in RSS; Chief is friend, philosopher and guide for the millions of swayamsevakas. But the chief's great leap forward posed a massive challenge not only for cadre but for the society at large .
New Delhi, September 20. Lakhs of swayamsevakas assmbeled in parks and open fields in thousands of shakhas across the country this morning, were pondering over the utterances of chief of world's largest social organisation Rashtriya Swayamsevaka Sangh (RSS), Mohan Bhagwat, delivered on the last day of the three day dialogue session here yesterday. Cadres were confused and Bauddhik Pramukhs (teachers) of the shakhas were unable to answer their queries.
What was supposed to be a get together of RSS leaders and select (but large) group of people from different sections of the society turned out to be a historic event in which Mohan Bhagwat unveiled a new course for RSS and India at large. Nobody expected that that Bhagwat would redefine the core concept of Hindu nationalism, "Hindutva" in the gathering , so suddenly and so radically.
Detractors and cynics were also at the loss of words as the RSS Chief deprived them of their main arguments often used against the RSS, that it is an anti-Muslim and exclusionist organisation. Bhagwat declared that Muslims were integral part of Hindu Nation. Without Muslims, Hindu nation is incomplete. Swayamsevaks over the decades were indoctrinated and inculcated with the thought that Hindus were the real "son of soil" and Hindu Nation should be immune from alien influences. Muslims, unless Indianised, can not be part of Hindu Nation. Without demanding any initiation, Bhagwat included about 150 million Muslims into RSS's vision of Hindu Nation.
RSS overnight turned out to be a progressive and socially radical organisation instead of a conservative and orthodox organisation, as the Chief supported Roti-Beti relationship ( dining together and engaging in inter-caste marriages)
Was Bhagwat mandated by the top leadership of RSS to put forward this new vision of Hindu Nation? has there been any exercise to gather the opinions of ground level swayamsevakas? Was he expressing his personal views? There is nothing like personal views in RSS; Chief is friend, philosopher and guide for the millions of swayamsevakas. But the chief's great leap forward posed a massive challenge not only for cadre but for the society at large .
Wednesday, 19 September 2018
Sunday, 20 May 2018
Sunday, 29 April 2018
Friday, 27 April 2018
Wuhan Summit : Indians know and worship Dragon in 9 names ( a revelation even to Xi Jinping!)
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं धृतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
(Anant, Vaasuki, Shesha,Padmanabha,Kambal,Shankhpaal,
Dhritarashtra,takshak and kaaliya)
(एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायंकाले पठेनित्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत)
🐍
Sunday, 15 April 2018
Saturday, 27 January 2018
Prime Minister Narendra Modi's stand-alone visit to Palestine, United Arab Emirates and Oman (February 9-12, 2018)
New Delhi ,January 27, 2018
Prime Minister Narendra Modi will be on a State visit to Palestine, UAE and Oman from 9-12 February 2018.
This will be the first ever visit by an Indian Prime Minister to Palestine, and Prime Minister Modi's second visit to UAE and first to Oman. During the visit, the Prime Minister will hold discussions on matters of mutual interest with their leaders, apart from participating in other events.
Prime Minister would be addressing the Sixth World Government Summit being held in Dubai at which India has been extended 'Guest of Honour' status. He will also meet the Indian community in UAE and Oman.
This will be the first ever visit by an Indian Prime Minister to Palestine, and Prime Minister Modi's second visit to UAE and first to Oman. During the visit, the Prime Minister will hold discussions on matters of mutual interest with their leaders, apart from participating in other events.
Prime Minister would be addressing the Sixth World Government Summit being held in Dubai at which India has been extended 'Guest of Honour' status. He will also meet the Indian community in UAE and Oman.
Friday, 5 January 2018
देश की राजनीति पर जनार्दन द्विवेदी की साफगोई
बड़ी बेढब बात मेरी, भला क्या औकात मेरी
"उपवनों के पारखी तुम, जंगलों की जात मेरी" -
कविता ( राज्यसभा में विदाई भाषण) पांच जनवरी 2018
“ मित्र मेरे !बड़ी बेढब बात मेरी, भला क्या औकात मेरी
उपवनों के पारखी तुम, जंगलों की जात मेरी
बन न पाएंगे तुम्हारी कल्पनाओं के मुताबिक चित्र मेरे|
मित्र मेरे,
धैर्य धरती मन पवन है, अग्नि सा अंतर्दहन है
सिंधु जैसा है हृदय तल, दृष्टि पटल अपना गगन है
क्या करूं मैं, यदि हमेशा ही रहे हैं स्वप्न बहुत विचित्र मेरे|
मित्र मेरे,
कुछ लुटेरे, कुछ भिखारी
मिट रही है ऊर्ध्वगामी वृत्ति की पहचान न्यारी
प्रश्न उठता हर दिशा से,
किसलिए संकल्प ढोएं सब विकल्पों के पुजारी
इसलिए यह जानने से अब न कोई फर्क पड़ता
कौन मित्र, अमित्र मेरे
मित्र मेरे।"
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