Friday, 5 January 2018

देश की राजनीति पर जनार्दन द्विवेदी की साफगोई 


"उपवनों के पारखी तुम, जंगलों की जात मेरी" - 

कविता ( राज्यसभा में विदाई भाषण) पांच जनवरी 2018 

“ मित्र मेरे !
 बड़ी बेढब बात मेरी, भला क्या औकात मेरी
उपवनों के पारखी तुम, जंगलों की जात मेरी
बन न पाएंगे तुम्हारी कल्पनाओं के मुताबिक चित्र मेरे|
मित्र मेरे,
धैर्य धरती मन पवन है, अग्नि सा अंतर्दहन है
सिंधु जैसा है हृदय तल, दृष्टि पटल अपना गगन है
क्या करूं मैं, यदि हमेशा ही रहे हैं स्वप्न बहुत विचित्र मेरे|
मित्र मेरे,
कुछ लुटेरे, कुछ भिखारी
मिट रही है ऊर्ध्वगामी वृत्ति की पहचान न्यारी
प्रश्न उठता हर दिशा से,
किसलिए संकल्प ढोएं सब विकल्पों के पुजारी
इसलिए यह जानने से अब न कोई फर्क पड़ता
कौन मित्र, अमित्र मेरे
मित्र मेरे।"

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